अकारण भय 


मेरा एक मित्र है उसने अपने कार्यालय के आगे एक तख्ती लटका रखी है 
 "तुम बेफिक्र रहे हो "
देखने में यह तक की बड़ी हास्यप्रद लगती है। और जो भी कार्यालय में आने वाला इसको पढ़ता है, वह मुस्कुराने लगता है। इस बात को जो गंभीरता से लेता है वह इसकी गहराई भरा अर्थ समझ सकता है।

 वास्तव में प्रगतिशील सुखी और उन्नति को वही प्राप्त कर सकता है जो बेफिक्र रहें किसी बात की फिक्र या चिंता नहीं करनी चाहिए आखिर चिंता क्यों? जो होगा देखा जाएगा अपना काम करते रहना चाहिए। वक्त की फिक्र क्यों? ऐसा हो जाएगा वैसा हो जाएगा इस तरह की बातों को सोचना या विश्वास करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है।

आए दिन समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित होते रहते हैं कि अमुक हवाई जहाज दुर्घटना ग्रस्त हो गया और इतने व्यक्ति मारे गए इन समाचारों के प्रकाशन के बाद भी क्या लोग हवाई यात्रा नहीं करते ? सब करते हैं।  अकारण भय यह कि वह हर बात को अपने मन में जमा लेता है जो निश्चय ही वह अकारण भय का शिकार बन जाता है। इसी प्रकार से कई भय की भावनाएं हमारे मन में अपना आसन जमाए बैठी रहती है। छात्रों के मन में भय रहता है कि कहीं वे परीक्षा में फेल ना हो जाए नौकरी पर से अज्ञात भय से डरता रहता है। कि कहीं उनकी नौकरी न छूट जाए। कुरुप व्यक्ति सुंदर पत्नी पाकर डरता रहता है कि कहीं उसकी पत्नी उसे छोड़ने दे। अपराध करने वाला मन ही मन घबराता रहता है कि उसका अपराध खुल न जाए। और जेल की हवा खानी पड़े। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के भय से अवश्य पीड़ित होता है।

मनोवैज्ञानिकों का कथन है की प्रत्येक व्यक्ति के मन में किसी न किसी प्रकार का अकारण भय कुछ न कुछ आंशिक रूप से अवश्य विद्यमान रहता है। संसार का कोई मनुष्य इससे अछूता नहीं है एक भय उनके मन से निकल जाता है।

 तो दूसरा भय उनके मन में अकारण अपने पैर फैला लिया करता है यह एक आश्चर्य की बात है कि लोग जानते कि उनको डर किस बात का है ?पर फिर भी अज्ञान भय कि छाया उनको घेरे रहती है भय का राक्षस मनुष्य के मन में बड़ी शीघ्रता से अपने रूप बदलता रहता है।

 मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार विभिन्न प्रकार के भय की संख्या 5000 से ऊपर है वास्तव में भय भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होता रहता है। चिंता, फिक्र, ईष्र्या, कायरता, संदेह, अंधविश्वास,  सहनशीलता, अतिसय लोग, मक्खीचूस मन, यह सब एक ही भय के विविध रूप है। यह सब किसी न किसी रूप में प्रकट होकर मनुष्य के शरीर और अंगों को अकर्मण्य बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। यह मनुष्य को पंगु बना डालते हैं। वास्तव में भय मानव जाति का महा शत्रु है।

 भय मनुष्य  की प्रसन्नता और उसके कार्य क्षमता को नष्ट कर देता है। इस प्रकार के  अकारण भय के कारण कुछ लोग अपने प्राण तक गंवा बैठते हैं।

 भय के कारण मनुष्य नाना प्रकार के रोगों का भी शिकार हो जाता है। डॉक्टर का कहना है कि बहुत सी बीमारियां अकारण भय के कारण कई मनुष्य को रोग से घेर लेती है। व्यर्थ की आशंका के कारण वह बीमार पड़ जाते हैं।

 एक व्यक्ति को अंधकार में चूहे ने काट लिया उसके मन में भय समा गया की उसे सांप ने काटा है। इस अकारण भय के कारण वह बेहोश हो गया डॉक्टर इलाज करते रहे और समझाते रहे पर इसी भय के कारण कई दिनों तक बीमार पड़ा रहा। और अंत में उसकी मृत्यु हो गई। 
 मनुष्य अकारण भय का गुलाम बन कर अपने को व्यर्थ ही दुर्बल करता रहता है। आज हजारों नहीं लाखो आत्माएं भय कि गुलाम है। इस भय के आगे बड़े-बड़े सूरमा भी हथियार डाल देते हैं। भय कारण निश्चित रूप से किसी कार्य में सफलता प्राप्त करने वाला व्यक्ति असफल रह जाता है। भय ज्ञान और विवेक को समाप्त कर देता है। भय एक ऐसा राक्षस है जिसको लग गया तो उसे खाकर छोड़ता है।

 भय ने आज न जाने कितने प्रतिभाओं को ऐसे में कुचल कर रख दिया है अकाल भय से मनुष्य अकर्मण्य हो जाता है। इसे इस प्रकार से चिंता का रोग लग जाता है और हर बार उसको यह शंका लगी रहती है कि अब यह होने वाला है भय के कारण वह अपने भविष्य के प्रति घबरा जाता है।

 अगर इस बात पर गौर किया जाए तो एक कारण है एक मिथ्य कल्पना है शेख चिल्ली का थोथा सपना है वास्तव में  अकारण भय का कोई अस्तित्व या वास्तविकता नहीं है। यह एक साबुन के बुलबुले की तरह है जो एक पल में समाप्त हो जाने वाली भावना मात्र है। इस कारण "तुम बेफिक्र रहो" की तख्ती अपना मायना रखती हैं। इसका मतलब है किसी बात की फिकर ना करो वास्तव में हमारा जीवन ऐसा ही होना चाहिए। फिकर किस बात की ? हमें अपना काम बराबर निष्ठा से करते रहना चाहिए।

 अकारण भय, अनावश्यक चिंताएं कर अपने लिए समस्या उत्पन्न करने से कोई फायदा नहीं है। इसके विपरीत यदि हम निरंतर मांग-जांच और मतलब के बारे में सोचें, सदा रचनात्मक विचार करें, तो निश्चय ही हम एक सुखी और संपन्न जीवन जी सकते हैं‌‌। यदि कहीं हम अपनी सीमित चेतना से छुटकारा पा सकते हैं जिसका दायरा अकारण भय है जिसने हमारे जीवन को तुच्छ बना रखा है। और हम इस से मुक्ति पा सकते हैं। तो हमारी प्रगति का मार्ग अपने आप खुल जाता है इसलिए अनावश्यक भय और अनावश्यक चिंताएं से हमेशा दूर ही रहना चाहिए यह हमारे प्रगति के रास्ते में एक बहुत बड़ी रुकावट है