देवर्षि नारद के पूर्व जन्म की कथा
नारद जी बोले -हे व्यास जी ! महात्माओं से कथा सुनने के कुछ दिनों के बाद एक दिन मेरी मां गाय दोहन करने गई जहां उन्हें सर्प ने काट लिया और वह मर गई ।मैं उस समय उनका मुंह बिना देखे उत्तर दिशा की ओर एक घने वन में जाकर बैठ गया तभी आकाशवाणी हुई - है - वत्स !तुम संत जनों की सेवा करो, तभी इस शरीर को त्यागकर पार्षद बनोगे और तुम्हें सभी जनों की बातें याद रहेगी। आकाशवाणी सुनकर मैं संतों में विचरण करता रहा और मेरा वह शरीर छूट गया।
कल्पान्त मैं जब नारायण चयन कर रहे थे तो उनकी सांस के साथ में उनके अंदर में प्रवेश कर गया। योग निद्रा से जागकर जब भगवान ने मरिचादि को उत्पन्न किया तो मैं उनके प्राणों से उत्पन्न हुआ और संसार में विचरण करने लगा। भगवान की कृपा से मुझे हर स्थान पर जाने की शक्ति प्राप्त है। नारद जी इस प्रकार व्यास जी से कहकर वीणा बजाते हुए हरि गुण गाते हुए वहां से अपने लोक चले गए।
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